व्यापार से साम्राज्य तक: 18 वीं शताब्दी के शुरुआत में मुगल साम्राज्य के विघटन के पश्चात कई स्वतंत्र शक्तियां प्रचलन में आई लेकिन उनमें से कोई भी इतना शक्तिशाली नहीं था जो भारत की राजनीति की शक्तियों को नियंत्रण कर सके |
18वीं शताब्दी के मध्य राजनीतिक पद पर एक नई शक्ति दिखाई दी जो ब्रिटिश चौकी 15वीं शताब्दी में भारत के यूरोपियों के साथ व्यापारिक संबंध बन चुके थे कई यूरोपीय शक्तियां जैसे इंग्लैंड पुर्तगाल फ्रांस और डेनमार्क में भारत के साथ व्यापार किया पूंजीवाद और औद्योगिक प्रांत के विकास में यूरोपियों को भारत व्यापार में एक बड़ी साझेदारी की होने में सहायता की वहां विभिन्न यूरोपीय शक्तियों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा पैदा हुई लेकिन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में स्वयं को स्थापित करने में सफल हुई।
पूर्व में ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन
व्यापार से साम्राज्य तक: 31 दिसंबर 1680 में व्यापारियों के एक समूह जिसने ईस्ट इंडिया कंपनी में खुद को शामिल किया था उसे इस इंडिया के साथ समस्त व्यापार पर एकाधिकार के लाभ दिए गए | कंपनी के जहाज भारत में सर्वप्रथम सूरत के बंदरगाह पर 1608 इसवी में पहुंचे |
सर थॉमस रो मुगल शासक जहांगीर के दरबार में 1615 एसपी में राजा जेम्स प्रथम के दूध के रूप में पहुंचे और सूरत में ब्रिटिश ओं के लिए एक कारखाना स्थापित करने का अधिकार प्राप्त किया |
ब्रिटिश ने पुर्तगाल को काफी प्रभावित किया और भारत में लंबे समय तक अपने व्यापारिक क्रियाओं का एक बड़े स्तर पर विकास किया | कंपनी पूर्व भारतीय मसालों के व्यापार में साझा करने के लिए बनाई गई थी या व्यापार स्पेन और पुर्तगाल इयों का एकाधिकार हो चुका था |
जब तक इंग्लैंड द्वारा स्पैनिक अमरदा की हार 1518 ने अंग्रेजों को इस ए का अधिकार को तोड़ने का मौका दिया | 1612 अभी तक कंपनी ने अलग से जहाजी यात्राओं का आयोजन किया अस्थाई संयुक्त भंडारे की जब 1657 ईस्वी में स्थाई संयुक्त भंडार का विकास हुआ |
18 वीं शताब्दी के मध्य के बाद से कपास की वस्तुओं का व्यापार रोक दिया गया जबकि चीन से चाय का महत्वपूर्ण आयात होने लगा |
19वीं शताब्दी के शुरुआत में कंपनी ने चीन के अवैध अफीम निर्यात के साथ चाय के व्यापारी में सहायता के लिए धनराशि घोषित की।
चीन की असहमति ने इस व्यापार को पहले अफीम युद्ध 1939 से 1942 के रूप में धकेल दिया | जिसका निष्कर्ष चीन की हार के रूप में निकला और ब्रिटिश के व्यापारिक एक अधिकारों में विस्तार हुआ | दूसरे संघर्ष जो अक्सर टी युद्ध 1856 से 1860 के नाम से पुकारा जाता है यूरोपियों ने व्यापारिक अधिकारों को बढ़ावा दिया।
कंपनी ने अपने भाग्य के उदय को देखा और इस परिवर्तन ने एक व्यापारिक उनमें से एक सांची दूध में के रूप में ढकेल दिया | जब इसकी सेना के अधिकारी राबर्ट लाइव ने 1758 ईस्वी में प्लासी के युद्ध में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को पराजित किया।
व्यापार से साम्राज्य तक: कुछ सालों बाद कंपनी ने मुगल शासकों की ओर से राजस्व एकत्र करने के अधिकार जप्त कर लिए लेकिन इसके प्रशासन के प्रारंभिक साल बंगाल के लोगों के लिए नुकसान दे थे सशक्त समझौते एवं लाभदायक व्यापार को बनाए रखने के लिए लगाए गए प्रयासों ने स्थानीय शासकों के साथ तीव्र संघर्षों को जन्म दिया। इसलिए कंपनी के लिए व्यापार को राजनीति से अलग करना बेहद मुश्किल था तो चलिए देखते हैं कि यह कैसे घटित हुआ।
ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापार की बंगाल में शुरुआत
व्यापार से साम्राज्य तक: 1651 इस पी में पहला अंग्रेजी कारखाना हुगली नदी के तट पर स्थापित किया गया था। कारखाने में एक गोदाम था जहां निर्यात के लिए सामान रखा जाता था और इसमें कार्यालय होते थे जहां कंपनी के अधिकारी बैठते थे। याहू आधार था जिसके कारण कंपनी के व्यापारी उस समय कारक के रूप में संचालित होते थे।
जैसे-जैसे व्यापार फैला कंपनी ने व्यापारियों और 14 घरों को फैक्ट्री के आस पास आकर बसने के लिए मजबूर किया। 1696 तक कंपनी ने इस आबादी की चारों तरफ एक किला बनाना शुरू कर दिया था।
2 साल बाद 3 गांव में कंपनी को जमीदार के अधिकार दिए गए जिसके बाबत मुगल अधिकारियों को रिश्वत दी गई। इनमें से एक कली कटा था जो बाद में कोलकाता शहर के रूप में विकसित हुआ और आज भी कोलकाता के नाम से जाना जाता है।
कंपनी को एक फरमान जारी किया गया जिसमें शुल्क मुक्त व्यापार शुल्क के अधिकार दिए गए इसके लिए मुगल शासक औरंगजेब को जबरदस्ती राज्य किया गया। 1717 एसबीके फरमान की अंग्रेज व्याख्या पर बंगाल के सभी नवाब मुर्शीद कुली खान से अलीम खान तक को आपत्ति थी।
व्यापार से साम्राज्य तक: उन्होंने कंपनी को अपने राजकोष से एक मुक्त रकम का भुगतान करने के लिए बाध्य किया और अधिकारों के दुरुपयोग को दृढ़ता से दबा दिया। इस मामले में नवाबों के अधिकार को प्रकृति करने के लिए कंपनी को बाध्य होना पड़ा | लेकिन इसके सेवकों ने प्रत्येक और सर से बचने के लिए इस अधिकारी को घटा बताया |
जब इसके विखंडन का समय आया तो नवाबों की आज्ञा के बिना ही कंपनी ने फ्रांस के साथ होने वाले संघर्ष की उम्मीद में कोलकाता को मजबूत किया जो उस समय चंदन नगर में तैनाती पर थे। सिराजी ने ठीक ही इस कार्य को अपनी संप्रभुता पर हुए हमले के रूप में लिया।
क्या आप जानते हैं ? विदेशी व्यापारिक कंपनियों ने स्थानीय राजाओं के साथ दूसरे राज्यों के व्यापारियों के विरुद्ध अपने हितों की रक्षा के लिए अपने राजनयिक संबंधों का प्रयोग किया । उनके दुश्मनों को उखाड़ फेंकने में उनके संरक्षक ओ द्वारा उनकी सहायता भी की गई और बदले में नए अधिग्रहित राज्य में भूमि और वाणिज्य के लाभ मिले।
व्यापार से युद्ध तक
व्यापार से साम्राज्य तक: 18 वीं शताब्दी की शुरुआत में बंगाल के नवाब और कंपनियों के बीच संघर्ष काफी तेज हो गया था। औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात बंगाल के नवाब अपनी शक्ति दिखाने लगे थे। उस समय दूसरी क्षेत्रीय ताकतो की स्थिति भी ऐसे ही थी ।
- नवाब चाहते थे कि कंपनी भारत में व्यापार के अधिकारों को प्राप्त करने के लिए राजस्व का भुगतान करें।
- उन्होंने कंपनी से अपने सिक्कों की ढलाई रोकने के लिए कहा।
- उन्होंने कंपनी को अपनी किलाबंदी के विस्तार के लिए रोका।
- उन्होंने कंपनी पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया और कहा कि कंपनी को किसी भी कर का भुगतान न करने के कारण बंगाल सरकार को भारी रकम का नुकसान हुआ।
- उन्होंने सरकारी अधिकारियों के अपमान के लिए और नवाबों के अधिकार का सम्मान न करने के लिए कंपनी पर आरोप लगाया।
व्यापार से साम्राज्य तक: इन सभी मांगों ने कंपनी को नवाबों के खिलाफ कर दिया । कंपनी ने महसूस किया कि नवाबों को कर का भुगतान उनके व्यापार के बर्बाद कर देगा और इसलिए कंपनी स्वयं को भारत में मजबूती से स्थापित करने के लिए ज्यादा से ज्यादा गांव को खरीदना चाहती थी।
इस प्रकार नवाबों और कंपनी के बीच हुए इन संघर्षों का परिणाम क्लासिक के प्रसिद्ध युद्ध के रूप में हुआ।
प्लासी का युद्ध
व्यापार से साम्राज्य तक: 1756 एचडी में अली अली खान की मृत्यु के पश्चात सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बन गया। कंपनी में एक कैसा कठपुतली शासक चाहती थी जो अपनी इच्छा से उन्हें लाभ दें। इसलिए उन्होंने सिराजुद्दौला के दुश्मनों में से एक को नवाब बनाने के लिए सहायता करने का प्रयास किया।
व्यापार से साम्राज्य तक: सिराजुद्दौला आक्रोशित हो गया और कंपनी से राजनीतिक संबंधों में दखलअंदाजी को रोकने किलो के निर्माण को रोकने तथा करो का भुगतान करने के लिए कहा । वार्ता विफल होने के पश्चात सिराजुद्दौला ने अपनी 30000 सैनिकों के साथ कासिम बाजार में अंग्रेजी कारखाने पर और कोलकाता में कंपनी के किले पर कब्जा कर लिया।
कोलकाता के पतन के बारे में सुनकर कंपनी के अधिकारियों ने रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में सेना को मद्रास भेजा। नवाबों के साथ वार्ता विफल होने के पश्चात रॉबर्ट क्लाइव ने प्लासी में सिराजुद्दौला के खिलाफ कंपनी की सेना का नेतृत्व किया। लाइव सिराजुद्दौला के कमांडरों में से एक मीर जाफर का समर्थन हासिल करने में सफल रहा। उसने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लड़ाई नहीं की बल्कि कंपनी को युद्ध जिताने में सहायता की।व्यापार से साम्राज्य तक:
सिराजुद्दौला की युद्ध की में हार हुई और उसी वक्त उनकी हत्या कर दी गई। मीर जाफर को नवाब बना दिया गया था। कंपनी ने महसूस किया कि यदि कठपुतली बने नवाब उनके लिए इतने सहायक नहीं थे जितना कि उन्हें जरूरत थी क्योंकि उन्हें अपनी प्रजा के सामने अपना सम्मान कायम रखने की जरूरत थी। जब मीर जाफर ने विरोध किया तो उसे पद से हटा दिया गया और मीर कासिम को नवाब बनाया गया।
व्यापार से साम्राज्य तक:
1764 एचडी में मीर कासिम ने भी शिकायत करना शुरू कर दिया इसलिए कंपनी ने उसके साथ लड़ाई लड़ी बक्सर का युद्ध और लड़ाई जीती। मीर जाफर को पुनः बंगाल के नवाब के रूप में पुनर युक्त किया गया।
1765 ईस्वी में मीरजाफर मर गया। कंपनी ने महसूस किया कि कठपुतली नवाबों से काम करवाना मुश्किल था इसलिए उन्होंने स्वयं को नवाब बनाना चाहा।
व्यापार से साम्राज्य तक: बंगाल के दीवान के रूप में कंपनी को नियुक्त किया गया था अब वह ब्रिटेन सिलाई सोने चांदी की सामान खरीदने की बजाय बंगाल के विशाल राजस्व संसाधनों का उपयोग कर सकते थे। इस राजस्व का प्रयोग भारत में सूती और रेशम उद्योग खरीदने कंपनियों के सैनिकों का प्रबंध और कोलकाता में कंपनी के किलो और कार्यालयों के निर्माण की लागत को पूरा करने के लिए किया जा सकता है।
कंपनी का फैलता शासन
व्यापार से साम्राज्य तक: 1757 एसबीआर अट्ठारह और 1857 ईसवी के बीच ईस्ट इंडिया कंपनी ने विभिन्न भारतीय राज्यों पर कब्जा किया। बक्सर की लड़ाई 1764 इस बी के पश्चात कंपनी ने निवासियों को नियुक्त किया जो वास्तव में उनके लिए राजनीतिक और वाणिज्यिक एजेंट थे।
व्यापार से साम्राज्य तक: निवासियों के माध्यम से कंपनी ने भारतीय राज्यों की आपसी मामलों में सीधे हस्तक्षेप करना शुरू कर दिए। कंपनी ने सहायक गठबंधन किस्मत के लिए उन राज्यों पर भी विशेष बल दिया जो कंपनी द्वारा संरक्षित किए गए थे। बदले में उन्हें सहायक बलों के लिए भुगतान करना पड़ा और असमर्थ होने पर उनके संघ का एक भाग से लिया गया।
मैसूर के साथ युद्ध
व्यापार से साम्राज्य तक: 18 वीं शताब्दी के मध्य में हैदर अली की बढ़ती हुई शक्ति अंग्रेजों निजाम और मराठों के लिए चिंता का विषय थी। इसलिए 1767 इस बी में उन्होंने एक त्रिकोणीय गठबंधन का आयोजन किया और हैदर अली के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा की। अंग्रेजों को हैदराबाद के निजाम और हैदर अली दोनों को उनके कार्यों से विमुख करना पड़ा। उन्होंने माही में एक फ्रांस की संपत्ति जो हैदर अली के संरक्षण में थी उस पर कब्जा कर लिया।
इसने हैदर अली को बहुत क्रोधित कर दिया और उसने अंग्रेजों से बदला लेने का निश्चय किया। इटली हैदर अली ने निजाम और मराठों के साथ एक आम कारण बना या और तीन अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई के लिए सहमत हुए और इस प्रकार द्वितीय एंग्लो मैसूर युद्ध की शुरुआत हुई। हैदर अली का प्रमुख बेटा टीपू सुल्तान जो एक महत्वकांक्षी शासक था अपने क्षेत्र का विस्तार करना चाहता था।व्यापार से साम्राज्य तक
व्यापार से साम्राज्य तक: लेकिन अंग्रेज हमेशा उसके रास्ते में आए। टीपू सुल्तान ने त्रिकोण पर आक्रमण किया जो 1798 एचडी में अंग्रेजों के साथ युद्ध तीसरा एंग्लो मैसूर युद्ध का कारण बना। उसने भारत में फ्रांस के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित किए और उनकी सहायता से अपनी सेना का आधुनिक करण किया। इसके अलावा टीपू ने सहायक गठबंधन को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। इस प्रकार 1799 में चौथा एंग्लो मैसूर युद्ध हुआ।
यदि टीपू सुल्तान बहादुरी से लड़ा वह श्रीरंगपट्टनम में पराजित हुआ। वह लडते हुए मारा गया। मैसूर राजा कृष्ण को दे दिया गया था जो पूर्व हिंदू राजवंश से जुड़े हुए थे। उसने सहायक गठबंधन को स्वीकार किया। व्यापार से साम्राज्य तक
क्या आप जानते हो
बहुत प्रार्थना ओं के बाद हैदर अली और फातिमा के 20 नवंबर 1750 ईस्वी में टापू सुल्तान पैदा हुआ था सुल्तान उसके नाम का एक भाग था जिससे बार राजा तथा शासक दोनों के रूप में जाना जाता था।
मराठों के साथ युद्ध
व्यापार से साम्राज्य तक: 18 वीं शताब्दी के अंत में तथा 1 मई से शताब्दी के प्रारंभ में ब्रिटिश और मराठा महासंघ के बीच तीन युद्ध हुए। मराठा युद्ध ब्रिटिश और मराठा महासंघ के बीच युद्ध की श्रृंखला के रूप में थे। पहला युद्ध एक ग्रह युद्ध था। जिसमें ब्रिटिश ने समर्थन का एक गुट से दूसरे गुट के लिए शुरू। व्यापार से साम्राज्य तक
परिणाम स्वरूप ब्रिटिश ने पहला संघर्ष खो दिया और मुंबई से लगे एक छोटे से द्वीप का फायदा उठाया। द्वितीय युद्ध एक जात की हार का कारण था, जितने तब ब्रिटिश के संरक्षण को स्वीकार किया। अनिल कुट्टू की सफलतापूर्वक प्रतिस्पर्धा हुई और मराठों के मध्य भारत और राजस्थान मैं खाली हाथ छोड़ दिया गया। तीसरा युद्ध मराठी क्षेत्र के ब्रिटिश के सम्मेलन के साथ समाप्त हुआ इस प्रकार भारत में ब्रिटिश के प्रमुखता बनी रही।
गोद निषेध अधिनियम
व्यापार से साम्राज्य तक: गोद निषेध अधिनियम था, जो कथित रूप से लॉर्ड डलहौजी जो 1848 से 18 से 56 ईसवी तक भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए गवर्नर जनरल थे, उनके द्वारा बनाई गई थी। भारत में यदि किसी शासक को कोई वारिस नहीं हो तो उसे एक बच्चा गोद लेने की स्वीकृति थी। व्यापार से साम्राज्य तक
लेकिन अंग्रेजों ने ऐसी प्रथाओं को बढ़ावा देने से इनकार कर दिया। इस प्रकार जब सहायक और संरक्षित राज्य के शासक बिना किसी बारिश के मारे गए, तू उन राज्यों में बच्चा गोद लेना सफल नहीं हो सका और उस क्षेत्र को ब्रिटिश क्षेत्र में सम्मिलित कर दिया गया। जब लॉर्ड डलहौजी भारत आया उसने फैसला किया कि आश्रित राज्यों के शासकों को एक बार इस गोद लेने की अनुमति ब्रिटिश से लेनी पड़ेगी। व्यापार से साम्राज्य तक
व्यापार से साम्राज्य तक: इसे अपनाते समय कंपनी के पास संपूर्ण प्रशासनिक अधिकार थे, जो उपमहाद्वीप में कई क्षेत्रों तक फैले हुए थे। कंपनी ने इस सिद्धांत के आधार पर सातारा जयपुर तथा संबलपुर नागपुर और झांसी और अवध और उदयपुर के रियासतों को अपने साथ मिला लिया। इस सिद्धांत का प्रयोग करके कंपनी ने अपनी वार्षिक राजस्व को करीब 4 मिलियन पाउंड तक बना लिया।
Conclusion
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